Saturday, October 23, 2010

एक इ-मेल

पिछले दिनों तुम्हे एक मेल किया था,


आज फिर कर रहा हूँ,

पिछले मेल का जवाब नहीं आया,

रोज एक आस के साथ,

मेल देखता था,

की तुम्हारा जवाब होगा,

'इन्बोक्स' खुलते ही उम्मीद ढेह जाती थी,

एहसास वही होता जैसे प्रेम के

तूफान के शांत होने पर होता है,

पर शायद इस 'लॉग इन' से,

'इन्बोक्स' के खुलने के सफ़र में,

इस प्रेम के चरम तक पहुचने के पहले के, 'फॉर प्ले' में,

मजा आने लगा है,

इन दस दिनों में जवाब की उम्मीद जा रही थी,

इसलिए आज फिर कर रहा हूँ,

तुम्हारा जवाब नहीं जवाब की,

आश को पाने के लिए.................

6 comments:

Praveen P said...

Wah Mere Mordern Premi...

लोकेन्द्र सिंह said...

आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है ..

Anonymous said...

आपका स्वागत है।

Patali-The-Village said...

बहुत अच्छी पोस्ट| धन्यवाद|

BAK-BAK said...

sir kya kahu aur kya na khu ...kuch kahunga to bhi kuch na kuch chhut hi jaega...kucn ni kahunga to bhi kuch chut gya sa lagega ...

Bakait said...

thnks