Saturday, October 3, 2015

नींद भी तुम्हारे जैसी हो गयी...

इतने दिनों के बाद,
आज फिर खिचड़ी मंगवा के खाई।
आज फिर भागते -भागते देर से पहुंची सिनेमा देखने।

आज फिर अकेले मे,
दो बार 'स्टुपिड' बोल के,
मैंने कोशिश की उच्चारण की उन गलतियों को समझने की,
जो सिर्फ तुम समझते थे,

आज फिर नींद भी,
तुम्हारे जैसी हो गयी,

क्योकि,
आज फिर तुम्हारा वो खत मिल गया,
जो तुमने कभी लिखा ही नहीं…


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