जैसे तुम्हे उठा कर,
सो जाता था,
क्या अब भी
कोई उठाता है तुम्हे?
क्या अब भी
उसके न उठाने पर
गुस्सा करती हो ?
वैसे ही झगड़ती हो ?
ऐसी ही एक सुबह तुमने
नींद मे ही मझे
एक कहानी सुनाई थी
क्या अब भी कोई सुनता है
जैसे मैंने सुनी थी ?
क्या अब भी तुम्हें…
अगर हाँ
तो भूल जाना मझे
'इग्नोर' कर देना
क्योंकि
बदलना सिख नहीं पाया
अब भी वैसा ही हूँ मैं
सो जाता था,
क्या अब भी
कोई उठाता है तुम्हे?
क्या अब भी
उसके न उठाने पर
गुस्सा करती हो ?
वैसे ही झगड़ती हो ?
ऐसी ही एक सुबह तुमने
नींद मे ही मझे
एक कहानी सुनाई थी
क्या अब भी कोई सुनता है
जैसे मैंने सुनी थी ?
क्या अब भी तुम्हें…
अगर हाँ
तो भूल जाना मझे
'इग्नोर' कर देना
क्योंकि
बदलना सिख नहीं पाया
अब भी वैसा ही हूँ मैं
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