Thursday, January 14, 2010

भीड़ में बसने वाली तन्हाई

छूता जरुर है मुझे,
तुम्हारा चुम्बन,
कर नहीं पता उत्पान्न,
कोई स्पंदन,
मेरी हो कर भी तुम,
मेरी कहाँ रह जाती,
फिसल जाता है कुछ,
भूल जाता हुईं मैं,
रोज़ गुजरने वाले, रास्तों में ,
पड़ने वाली दुकानों के नामों की तरह,
बस यहीं से,
'मेरी' और 'मेरे' से 'मैं' अलग हो जाता है,
एकदम तनहा,
प्रेम या विरह की उर्जा लिए,
ये एकांत की तन्हाई नहीं है ,
ये तो मेरी और तुम्हारी नजदीकियों के बीच,
में अंतहीन फैलाव लिए  पसरी,
भीड़ में बसने वाली तन्हाई है.