Monday, January 24, 2011

जब तुम्हे प्यार कर रहा होता हूँ....

आधार मिलता ही नहीं,
तुम्हारी रेशमी जमीन पर,
फिसलती  हूँ,
तैरती  हूँ,
तुम्हारे,
ऊपर,
जब तुम्हे प्यार कर रही होती हूँ,
बादल बन जाती हूँ....
(ये एक अधूरी कविता है, पड़ी रही, रुकी रही, सायद रुकी ही रह जाए)