Tuesday, December 7, 2010

तीसरे पन्ने पर पड़ा तुम्हारा चुम्बन

पन्ने पलट रहा था,
तुम्हारी यादों के,
बहुत सारी थीं,
फिर भी ढूँढ़ रहा था,
तुम्हारी ज्यादतियां,
अभी तीसरा पन्ना ही पलटा था,
की तुम्हारा चुम्बन मिल गया,
किताब बंद हो गयी,
कहीं दूर से तुम्हारे हसने की आवाज़ आई,
हँस रही थी तुम,
मेरी बेबसी पर,
और अच्छा लग रहा था मुझे,
तुम्हारा यूँ खिलखिला के हँसना.

0 comments: