(ये मेरे एक बड़े भाई तुल्य कवि की रचना है, यहाँ मैं कवि कह ले रहा हुईं क्योकि उनका नाम, उनके कहने पर नहीं दे पाया वरना वो इसके लिए भी मना कर देते, कविता कुछ ऐसी है की मैंने जब एक बार पढ़ी तो दोबारा, दोबारा पढ़ी तो फिर एक बार पढने का मन किया, हर बार एक नया अर्थ ले कर आती है)
चतुर कोई नहीं था
न पेड़
न चिड़िया
बस दोनों को भ्रम था
की किसी दिन
उनमे से कोई एक
चतुर न हो जाये
फिर किसी एक दिन
जब उनमे से कोई चतुर हो गया
तब दूसरे का कुछ और टूटा
जो कभी जोड़ा नहीं जा सकेगा
भ्रम बना रहेगा वैसे ही
अब चिड़िया और पेड़ की कहानी
कुछ दूसरी तरह से कही जाने लगी
चिड़ियाँ अब शाम को घर नहीं आयेंगी
और दिन में जमीन पे लोटती मिलेंगी
0 comments:
Post a Comment